एक समय था जब देश में आधुनिक मशीनें नहीं हुआ करती थी और परिवहन के भी आधुनिक साधन नहीं होते थे इसलिए माल परिवहन के लिए गधों का ही इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन जब से औद्योगिक क्रांति हुई है और परिवहन के बड़े-बड़े साधन आ गए हैं तब से गधों का इस्तेमाल लगभग बंद ही कर दिया गया है। ऐसे में किसी समय जब भारत में 3,60,000 गधी हुआ करते थे उनकी संख्या घटकर 1,27,000 पर आ गई।
लेकिन गधों की यह बदहाली देखकर बेंगलुरु के रहने वाले श्रीनिवास गौड़ा ने एक नई तरकीब से गधों का इस्तेमाल करने और उनसे पैसा कमाने के बारे में सोचा। 42 वर्षीय श्रीनिवास गौड़ा इससे पहले खुद का एक इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर एंड एनिमल हसबेंडरी पेंटर चलाते थे। इसके अलावा वह अपने इस सेंटर से वेटरनरी सर्विसेस, ट्रेनिंग एंड फोडर डेवलपमेंट का काम भी किया करते थे। लेकिन उन्होंने अपनी इस लाइन से आगे बढ़कर कुछ और करने के बारे में सोचा।
श्रीनिवास गौड़ा के पास भंडवाल जिले के इरा गांव में करीब 2 एकड़ जमीन थी और उस पर उन्होंने एक छोटा सा फार्म खोला था। वहां पर पहले उन्होंने बकरियों से शुरुआत की। फिर उन्होंने अपने फार्म पर खरगोश और कड़क नाथ मुर्गे की पालना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने कर्नाटक और आंध्रप्रदेश से कुछ गधों की नस्लें लाकर अपने फार्म पर पालना शुरू कर दिया।
शुरुआत में जब उन्होंने गधा पालन करने के बारे में किसी के सामने चर्चा की तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। लेकिन वो रुके नहीं और उन्होंने गधी का दूध बेचना शुरू किया। शुरुआत में उनको गधी का दूध बेचने में और इसकी मार्केटिंग करने में काफी दिक्कतें आई। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इस दूध से होने वाले फायदों के बारे में लोगों को कन्वेंस किया। इसके बाद अब आज के समय में उनका दूध सुपरमार्केट और मॉल में बेचा जा रहा है।
श्रीनिवास गौड़ा इस दूध के 30ml के पैकेट को ₹150 में बेचते हैं। जिससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। उन्होंने बताया कि गधे का दूध भी 500 से 600 रुपए प्रति लीटर बिकता है इसलिए आगे चलकर वह इसके बारे में भी सोच रहे हैं। इतना ही नहीं वह एक बॉटलिंग यूनिट लगाने के बारे में भी विचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस फार्म से निकली हुई हर चीज बिकाऊ है। गधे का गोबर भी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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