कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। जब तक मनुष्य को किसी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ती तब तक मनुष्य उस चीज को प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार का आविष्कार करने के बारे में सोचता भी नहीं है। इसी प्रकार का एक आविष्कार जो की आवश्यकता की कोख से जन्मा है उसके बारे में इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं।
सूर्य की किरणें पृथ्वी पर जीने वाले हर जीव की एक प्रमुख आवश्यकता है। पृथ्वी के किसी भूभाग पर सूर्य की किरणें ना पढ़ने से वहां रहने वाले उभयचर और थलचर को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं वहां पर धान भी उगाना काफी मुश्किल हो जाता है। जिसके वजह से भोजन की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। इटली का एक गांव ऐसा है जहां पर सूर्य की किरण पड़ती ही नहीं है।
जी हां दोस्तों इटली का गांव विगल्लेना ऐसा गांव है जहां पर सूर्य की किरणें पड़ती ही नहीं है। नवंबर से फरवरी महीने तक तो मानो सूर्य इन लोगों को दिखता भी नहीं है। यह गांव उत्तरी मिलान से 130 किलोमीटर निचले गर्त में बसा हुआ है। गांव की जनसंख्या केवल 200 है। गांव में सूरज की रोशनी की कमतरता से गांव वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। सर्दी के दिनों में ठंड अपने चरम सीमा को पार कर जाती थी।
तभी इस साल 2006 में गांव में रहने वाले एक आर्किटेक्ट ने इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया। आर्किटेक्ट ने अपने एक साथी इंजीनियर का साथ लिया और उसकी मदद से गांव के पास स्थित एक पर्वत की चोटी पर आर्टिफिशियल सूर्य बनाने का प्रयत्न किया। इस काम में उन्हें करीब 1 लाख यूरो का खर्च आया। दरअसल उन्होंने पहाड़ की चोटी पर 40 वर्ग किलोमीटर लंबा और चौड़ा एक शीशा कुछ इस प्रकार से लगाया कि सूर्य की रोशनी उस शीशे पर पढ़ते ही उसका रिफ्लेक्शन पूरे गांव पर हो सके। उनके द्वारा किया गया यह अविष्कार सफल हुआ और गांव में प्रतिदिन 6 घंटे रोशनी बनी रहती है। उसे शीशे का वजन 1.1 टन बताया जाता है। गांव के आर्किटेक्ट की मदद से बनाया गए आर्टिफिशियल सूरज के कारण गांव की बरसों पुरानी समस्या का समाधान हो गया।
