भारत में टेलीकॉम क्षेत्र का इतिहास काफी ज्यादा पुराना नहीं है। केवल 30 साल से भी भारत ने अपने यहां संचार क्रांति करके दिखाई है। 90 के दशक में भारत ने वैश्विक बाजार की तरफ अपने कदम बढ़ाने के लिए उदारीकरण की नीति अपनाई थी और उसी दौर में भारत में संचार क्रांति जोरो जोरो से हुई। उस समय किसी के घर पर टेलीफोन होना बहुत ही बड़ा अपवाद हुआ करता था।
मंत्री ने मुख्यमंत्री को किया था पहला कॉल
आप में से कई लोग उस दौर से वाकिफ होंगे ही की टेलीफोन के दौर में मोबाइल फोन का आना किसी सपने से कम नहीं था। बता दें कि साल 1995 में पहली बार केंद्रीय सरकार में टेलीकॉम मंत्री सुखराम में मोबाइल फोन से पहला कॉल किया था। उन्होंने वह कॉल उस समय के तत्कालीन बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ ज्योति बसु को वह फोन कॉल किया था।
काफी महंगा था कॉल करना
बता दे कि उस समय ना सिर्फ आउटगोइंग के लिए बल्कि इनकमिंग के लिए भी पैसे चुकाने पड़ते थे। इनकमिंग आउटगोइंग के लिए 1 मिनट के ही 8 रुपए खर्च करने पड़ते थे। ऐसे में अगर मोबाइल फोन ट्रैफिक आवाज के समय पर कोई फोन लगाता था तो यह कॉस्ट बढ़कर ₹16 तक पहुंच जाती थी। यानी आप समझ ही सकते हैं कि उस समय फोन कॉल करना कितना महंगा हुआ करता था।
आसान नहीं था मोबाइल खरीदना
उस समय के तत्कालीन केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री सुखराम ने जिस फोन से बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ ज्योति बसु को फोन लगाया था वह नोकिया का फोन था। उसे आम भाषा में हम डब्बा फोन कहते हैं। लेकिन वह डब्बा फोन ही उस समय 2 लाख की कीमत का था। ऐसे में आम इंसान के लिए उस मोबाइल फोन को खरीदना लगभग नामुमकिन ही था। आम इंसान ही नहीं बल्कि रवीश खानदान के लोग भी वह मोबाइल खरीदने से पहले सोचते थे।
बता दे कि उस समय हमारे देश में किसी भी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क नहीं हुआ करता था। लेकिन बीके मोदी ग्रुप और ऑस्ट्रेलिया की एक टेल्सट्रा के बीच एक ज्वाइंट वेंचर बनाया गया जिसके आधार पर एक मोदी टेल्सट्रा सर्विस की शुरूआत की गई। आगे चलकर यह नेटवर्क सर्विस कंपनी स्पाइस नेटवर्क कंपनी में परिवर्तित हो गए।
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