एक समय ऐसा भी था जब देश में पद्म पुरस्कारों के लिए उन लोगों का चयन किया जाता था जो मीडिया के कैमरे के सामने और अक्सर चकाचौंध में बने रहते थे। परंतु आज समय बदल गया है। आज पद्म पुरस्कार ऐसे लोगों को भी दिया जा रहा है जो सही मायने में उस पुरस्कार के हकदार है। देश के दूरदराज के इलाकों में भी बसे हुए सामाजिक क्षेत्र के लिए और कला के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य करने वालों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है।
जागरण डॉट कॉम के अनुसार ऐसे ही एक लोक कवि जिन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था उनका नाम है ‘हलधर नाग’। हलधार नाग उड़ीसा के बारगढ़ के रहने वाले हैं। हलधार नाग एक बहुत ही गरीब और भटकंती परिवार से आते हैं। हलधर नाग का बचपन काफी संघर्षों के साथ बिता। जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ते थे और केवल 10 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद घर की आर्थिक परिस्थिति को संभालने के लिए हलधर नाग को तीसरी कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ कर पैसे कमाने के लिए काम करना पड़ा।
हलधर नाग बचपन में एक मिठाई की दुकान में बर्तन मांजने का काम करते थे। कुछ समय बाद हलदर नाथ को गांव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के द्वारा गांव की एक स्कूल में बावर्ची का काम दिया गया। हलधर नाग ने तकरीबन 16 वर्ष तक उस स्कूल में बावर्ची का काम किया। हलधर नाक के गांव में धीरे-धीरे और भी स्कूल खुलना चालू है जिसके बाद हलधर नाग ने कुछ नया करने के बारे में सोचा और फिर बैंक से हजार रुपए का लोन लेकर खुद की एक स्टेशनरी की दुकान खोली।
स्टेशनरी की दुकान में बैठे बैठे हलधर नाग हमेशा सामाजिक और प्राकृतिक विषयों पर चिंतन किया करते थे। उन्हीं चिंतन मैं से हलधर नाग ने कविताएं लिखना प्रारंभ कर दी। साल 1990 में हलधर नाग ने अपनी पहली कविता ‘धोदे बरगच’ लिखी। कविताएं लिखने का यह सिलसिला चलता ही रहा। हलधर नाग को कविताएं लिखने में काफी रूचि बढ़ने लगी और उन्होंने कोसली भाषा में कई कविताएं लिखी। हलधर नाग ने 20 महाकाव्य भी लिखे। हलधर नाग मानते हैं की कविताएं व्यक्ति को उनके जीवन की वास्तविकता से अवगत करवाती हैं और व्यक्ति को जीवन नए तरीके से जीने की प्रेरणा देती हैं।
