आईएस देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा है। आईएएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए काफी मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है। कुल मान कर देखा जाए तो सर्वोत्तम में से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव इस परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों का जीवन भी उसी प्रकार का कठिन होता है। आईएएस के एग्जाम को उत्तीर्ण करने वाले कई ऐसे विद्यार्थियों की कहानियां आती रहती है जिनसे हमें प्रेरणा मिल सके। ऐसी ही एक प्रेरक दास्तान आईएएस सुमित कुमार की है।
आईएएस सुमित कुमार बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा गांव के रहने वाले हैं। कहा जाता है कि उनके गांव में बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव था। जिसके कारण उन्हें उनके पिता सुशील कुमार वर्णवाल ने बचपन में ही महज 8 साल की उम्र में गांव से दूर पढ़ने के लिए भेज दिया था। गांव में अच्छी स्कूल नहीं थी जिसमें पढ़कर सुमित कुमार एक अच्छे आईएस ऑफिसर बन पाते। इसी कारण उन्हें गांव से दूर महज 8 वर्ष की उम्र में ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपना घर छोड़कर जाना पड़ा।
सुमित ने साल 2007 में दसवीं की परीक्षा पास कर ली और साल 2009 में इंटर कॉलेज की परीक्षा पास कर ली। इसके बाद सुमित कुमार आईआईटी कानपुर से बी.टेक करने के लिए आगे बढ़े। बी.टेक की डिग्री पूर्ण होते ही सुमित कुमार यूपीएससी की तैयारी में जुट गए। साल 2017 में सुमित कुमार ने यूपीएससी क्वालीफाई कर ली और उन्हें 493 रैंक मिली। सुमित कुमार को डिफेंस कैडर दिया गया। परंतु सुमित कुमार इस कैडर से संतुष्ट नहीं थे इसलिए सुमित कुमार ने साल 2018 में पुनः परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया और इस बार सुमित कुमार मैं 53 वी रैंक हासिल कर ली।
सुमित कुमार जब अपने पैतृक गांव मैं आईएएस बन कर वापस लौटे तो उनके परिवार सहित उनके सभी गांव वाले उन्हें देखकर काफी दंग रह गए। सुमित कुमार के गांव के सभी लोग उनकी काफी प्रशंसा करने लगे। सुमित कुमार अपनी सफलता के लिए पूर्ण श्रेय उनके माता-पिता को बताते हैं। सुमित कुमार का कहना है कि उनके पिता से उन्हें काफी प्रेरणा मिलती है। जो कुछ सुमित कुमार ने अपने जीवन में सीखा है वह दूसरे विद्यार्थियों को भी सिखाने का प्रयत्न करते रहते हैं।
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